Thursday 28 August 2014

गजब है माया




हम कौन है? कैसे है? कहाँ से है?
कैसे कहें,कैसे कोई जानेगा इसे?

साथ की पहचान कभी हुई नहीं 
मालूम बस इत्ता,जन्म लिया है 

कहाँ  क्यों  चल रहे है पता नहीं 
अकेले चले  है इतना ही पता है 

जिंदगी में कौन कब तक चलेगा 
कोई जानता है न ; पहचानता है 

मासूम नजरों का धोखा देखिये 
सभी अपने हुए कोई गैर नहीं है 

माया  का ऐसा आवरण छाया है 
कोहरे से परे कुछ सूझता नहीं है 

बड़े से  बड़ा  सदमा भूल जाते है 
छोटी बात भूलने में चूक जाते है 

अजब बुद्धि की  गजब है माया 
सब अपना सा लगता होता नहीं 

करिश्माई; पैरो में चक्कर पड़ा है 
बढ़ते जारहे है कहीँ रुकते नहीं है 

सच कहा है उसने परवाह न कर 
तू  कब जिया है तेरा जीवन खुद 

एक  भी पल क्या तू जी सका  है 
ये तो खुद ही खुद को जी  रहा है 


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